गुरुवार, 1 अगस्त 2024

भगवद गीता के श्लोक और उसका वास्तविक अर्थ - प्रथम अध्याय

 

भगवद गीता के श्लोक और उसका वास्तविक अर्थ -  प्रथम अध्याय  by Sandeep Singh

श्लोक 1

श्लोक:

धृतराष्ट्र उवाच | धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः | मामकाः पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत सञ्जय || 1 ||

अर्थ:

धृतराष्ट्र ने पूछा: धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र में एकत्रित युद्ध की तैयारी कर रहे मेरे और पाण्डु के पुत्रों ने क्या किया, हे संजय?

वास्तविक जीवन में अर्थ और उदाहरण:

इस श्लोक में धृतराष्ट्र अपने चिरकालिक संजीवनी के माध्यम से युद्ध की स्थिति का विवरण जानना चाहते हैं। यह स्थिति हमें यह दिखाती है कि जब किसी महत्वपूर्ण घटना, जैसे कि बड़े निर्णय या संघर्ष, के आस-पास लोग एकत्र होते हैं, तो लोग जानना चाहते हैं कि उन घटनाओं के बारे में क्या हो रहा है।

उदाहरण:

मान लीजिए एक बड़े प्रोजेक्ट की तैयारी चल रही है और टीम के सदस्य एकत्र हुए हैं। प्रोजेक्ट के मैनेजर अपने सहकर्मियों से पूछते हैं कि प्रोजेक्ट की स्थिति क्या है और प्रत्येक विभाग की तैयारी कैसी चल रही है। यह सवाल इस बात का संकेत है कि प्रबंधक वर्तमान स्थिति को जानना चाहते हैं ताकि वे समझ सकें कि सब कुछ सही दिशा में चल रहा है या नहीं।

श्लोक 2

श्लोक:

सञ्जय उवाच | दृष्ट्वा तु पाण्डवानीकं व्यूढं दुर्योधनस्तदा | आचार्यमुपसंगम्य राजा वचनमब्रवीत् || 2 ||

अर्थ:

सञ्जय ने कहा: तब दुर्योधन ने पाण्डवों की सेना को व्यवस्थित देखा और आचार्य द्रोणाचार्य के पास जाकर कहा:

वास्तविक जीवन में अर्थ और उदाहरण:

इस श्लोक में दुर्योधन ने पाण्डवों की सेना को देखने के बाद अपने गुरु के पास जाकर अपनी चिंताओं और रणनीतियों की चर्चा की। यह दिखाता है कि जब किसी चुनौतीपूर्ण स्थिति का सामना करना होता है, तो लोग अपने विशेषज्ञों या सलाहकारों से मार्गदर्शन प्राप्त करने के लिए संपर्क करते हैं।

उदाहरण:

एक कारोबारी जब अपने प्रतिस्पर्धियों की ताकत और उनकी मार्केट स्थिति का आकलन करता है, तो वह अपने सीनियर सलाहकार या सलाहकार के पास जाकर रणनीति बनाने के लिए चर्चा करता है। इसी तरह, दुर्योधन ने अपने गुरु से बातचीत की ताकि वह अपनी योजना को मजबूत कर सके।

श्लोक 3

श्लोक:

पश्यैतां पाण्डुमैक्ष्वाकां श्रीमुखांsथ वेदन | सर्वस्य वानस्य भागं युयुत्सवस्तु |

अर्थ:

दुर्योधन ने कहा: हे आचार्य! देखिए पाण्डवों की विशाल सेना, जो कितनी सुसज्जित और शक्तिशाली है।

वास्तविक जीवन में अर्थ और उदाहरण:

इस श्लोक में दुर्योधन ने पाण्डवों की सेना की शक्ति और संगठन की प्रशंसा की। इसका वास्तविक जीवन में अर्थ यह है कि जब हम किसी को देखकर उसकी ताकत और तैयारी की सराहना करते हैं, तो यह हमारी रणनीतिक योजना में एक महत्वपूर्ण तत्व हो सकता है।

उदाहरण:

अगर किसी कंपनी का सीईओ एक नई प्रतियोगी कंपनी की प्रबंधन टीम को देखता है और उनकी योजनाओं और तैयारियों की सराहना करता है, तो यह सीईओ को अपनी खुद की कंपनी की रणनीति को बेहतर बनाने के लिए प्रेरित कर सकता है। यह दर्शाता है कि सशक्त विरोधियों की पहचान और उनकी ताकत की सराहना करना हमें अपनी योजना को और भी प्रभावी बनाने में मदद करता है।

इन श्लोकों के वास्तविक जीवन में उपयोगी सबक यही हैं कि चाहे वह युद्ध हो या व्यवसाय, स्थिति की गहरी समझ और सलाहकारों से मार्गदर्शन प्राप्त करना हमेशा महत्वपूर्ण होता है।

बुधवार, 24 जनवरी 2024

LIVE : आग्यामोहोळ उसळलं,कोटींच्या विराट गर्दीत मनोज जरांगे पाटील पुण्यात दाखल Manoj Jarange Pune

LIVE : आग्यामोहोळ उसळलं,कोटींच्या विराट गर्दीत मनोज जरांगे पाटील पुण्यात दाखल Manoj Jarange Pune

मनोज जरांगे पाटील भाषण मनोज जरांगे लाईव्ह jarange patil live news today jarange patil live jarange patil speech antarwali sarathi live antarwali sarathi live news today antarwali sarathi live batmya antarwali sarathi live 14 october antarwali sarathi live 14 october maratha aarakshan latest news jalna maratha aarakshan live manoj jarange patil live sabha today manoj jarange on chagan bhujbal manoj jarange on chhagan bhujbal manoj jarange on sadavarte gunaratna sadavarte on manoj garage gunaratna sadavarte gunratna sadavarte on maratha arakshan chhagan bhujbal on manoj jarange chhagan bhujbal on jarange patil jalna news today live jalna maratha sabha maratha morcha live #EknathShinde #gunratnasadavarte #manojjarangepatil #Jalna #MaharashtraPolice #Police #JalnaPolice #Sambhajinagar #Aurangabad #Pune #Mumbai #ahmednagar #Beed #Dhule Aurangabad Beed Jalna Osmanabad Nanded Latur Parbhani Hingoli Ahmednagar Dhule Jalgaon Nandurbar Nashik Mumbai City district Mumbai Suburban district Thane Palghar Raigad Ratnagiri Sindhudurg Akola Amravati Buldhana Yavatmal Washim antarwali sarathi sabha antarwali sarathi live Antarwali Sarathi Village in Maharashtra Wadigodri , Nalewadi Jalna Beed Highway Dhule Solapur Highway Ambad Georai Gevrai Beed अंतरवालि सारथी

सोमवार, 22 जनवरी 2024

राम मंदिर स्थापना दिन - 22 जनवरी 2024 - Ram Mandir Sthapana Din - 22 January 2024

 राम मंदिर स्थापना दिन - 22 जनवरी 2024 



22 जनवरी 2024 को भारत में एक महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक दिन है, जिसे 'राम मंदिर स्थापना दिन' कहा जाता है। इस दिन, श्रीराम के भगवान के मंदिर की नींव रखी जाएगी। यह घटना एक लम्बे समय से चले आ रहे विवाद के बाद हो रही है और यह भारतीय समाज में बड़े धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व की है।


राम मंदिर स्थापना दिन के इस मौके पर, लोग भगवान राम के मंदिर की नींव स्थापना के इस महत्वपूर्ण क्षण को धार्मिक और सांस्कृतिक धूप, आरती, और धार्मिक कार्यक्रमों के साथ मनाएंगे। इस दिन को देशभर में अनेक स्थानों पर धार्मिक उत्सव और समारोहों के साथ बड़े धूमधाम से मनाया जाएगा।


राम मंदिर स्थापना दिन का आयोजन राष्ट्रीय स्तर पर होगा, और यह एक सांस्कृतिक और धार्मिक संगीत, नृत्य, और भगवान राम के जीवन की कथाओं को जानने का अवसर प्रदान करेगा। लोग इस अद्भुत और प्रतीकात्मक क्षण को भगवान राम की कृपा और आशीर्वाद से सजाएंगे।

सोमवार, 28 अगस्त 2023

वीरगति पाने से पहले भगतसिंह जी द्वारा अपने साथियों को लिखा गया अन्तिम पत्र

वीरगति पाने से पहले भगतसिंह जी द्वारा अपने साथियों को लिखा गया अन्तिम पत्र 

वीरगति पाने से पहले भगतसिंह जी द्वारा अपने साथियों को लिखा गया अन्तिम पत्र


साथियो,

स्वाभाविक है कि जीने की इच्छा मुझमें भी होनी चाहिए, मैं इसे छिपाना नहीं चाहता। लेकिन एक शर्त पर जिंदा रह सकता हूँ,कि मैं कैद होकर या पाबन्द होकर जीना नहीं चाहता।

मेरा नाम हिन्दुस्तानी क्रांति का प्रतीक बन चुका है और क्रांतिकारी दल के आदर्शों और कुर्बानियों ने मुझे बहुत ऊँचा उठा दिया है- इतना ऊँचा कि जीवित रहने की स्थिति में इससे ऊँचा मैं हर्गिज नहीं हो सकता।

आज मेरी कमजोरियाँ जनता के सामने नहीं हैं। अगर मैं फाँसी से बच गया तो वे जाहिर हो जाएँगी और क्रांति का प्रतीक चिन्ह मद्धिम पड़ जाएगा या संभवतः मिट ही जाए। लेकिन दिलेराना ढंग से हँसते-हँसते मेरे फाँसी चढ़ने की सूरत में हिन्दुस्तानी माताएँ अपने बच्चों के भगतसिंह बनने की आरजू किया करेंगी और देश की आजादी के लिए कुर्बानी देने वालों की तादाद इतनी बढ़ जाएगी कि क्रांति को रोकना साम्राज्यवाद या तमाम शैतानी शक्तियों के बूते की बात नहीं रहेगी।


हाँ, एक विचार आज भी मेरे मन में आता है कि देश और मानवता के लिए जो कुछ करने की हसरतें मेरे दिल में थीं, उनका हजारवाँ भाग भी पूरा नहीं कर सका। अगर स्वतन्त्र, जिंदा रह सकता तब शायद उन्हें पूरा करने का अवसर मिलता और मैं अपनी हसरतें पूरी कर सकता। इसके सिवाय मेरे मन में कभी कोई लालच फाँसी से बचे रहने का नहीं आया। मुझसे अधिक भाग्यशाली कौन होगा? आजकल मुझे स्वयं पर बहुत गर्व है। अब तो बड़ी बेताबी से अंतिम परीक्षा का इन्तजार है। कामना है कि यह और नजदीक हो जाए।


आपका साथी


 भगतसिंह

शनिवार, 26 अगस्त 2023

क्या आपने कभी पढ़ा है कि हल्दीघाटी के बाद अगले १० साल में मेवाड़ में क्या हुआ..


क्या आपने कभी पढ़ा है कि #हल्दीघाटी के बाद अगले १० साल में #मेवाड़ में क्या हुआ..

इतिहास से जो पन्ने हटा दिए गए हैं उन्हें वापस संकलित करना ही होगा क्यूंकि वही हिन्दू रेजिस्टेंस और शौर्य के प्रतीक हैं. 
इतिहास में तो ये भी नहीं पढ़ाया गया है कि हल्दीघाटी युद्ध में जब महाराणा प्रताप ने कुंवर मानसिंह के हाथी पर जब प्रहार किया तो शाही फ़ौज पांच छह कोस दूर तक भाग गई थी और अकबर के आने की अफवाह से पुनः युद्ध में सम्मिलित हुई है. ये वाकया अबुल फज़ल की पुस्तक अकबरनामा में दर्ज है.

क्या हल्दी घाटी अलग से एक युद्ध था..या एक बड़े युद्ध की छोटी सी घटनाओं में से बस एक शुरूआती घटना..
महाराणा प्रताप को इतिहासकारों ने हल्दीघाटी तक ही सिमित करके मेवाड़ के इतिहास के साथ बहुत बड़ा अन्याय किया है. वास्तविकता में हल्दीघाटी का युद्ध , महाराणा प्रताप और मुगलो के बीच हुए कई युद्धों की शुरुआत भर था. मुग़ल न तो प्रताप को पकड़ सके और न ही मेवाड़ पर अधिपत्य जमा सके. हल्दीघाटी के बाद क्या हुआ वो हम बताते हैं.

हल्दी घाटी के युद्ध के बाद महाराणा के पास सिर्फ 7000 सैनिक ही बचे थे..और कुछ ही समय में मुगलों का कुम्भलगढ़, गोगुंदा , उदयपुर और आसपास के ठिकानों पर अधिकार हो गया था. उस स्थिति में महाराणा ने “गुरिल्ला युद्ध” की योजना बनायीं और मुगलों को कभी भी मेवाड़ में सेटल नहीं होने दिया. महाराणा के शौर्य से विचलित अकबर ने उनको दबाने के लिए 1576 में हुए हल्दीघाटी के बाद भी हर साल 1577 से 1582 के बीच एक एक लाख के सैन्यबल भेजे जो कि महाराणा को झुकाने में नाकामयाब रहे.

हल्दीघाटी युद्ध के पश्चात् महाराणा प्रताप के खजांची भामाशाह और उनके भाई ताराचंद मालवा से दंड के पच्चीस लाख रुपये और दो हज़ार अशर्फिया लेकर हाज़िर हुए. इस घटना के बाद महाराणा प्रताप ने भामाशाह का बहुत सम्मान किया और दिवेर पर हमले की योजना बनाई। भामाशाह ने जितना धन महाराणा को राज्य की सेवा के लिए दिया उस से 25 हज़ार सैनिकों को 12 साल तक रसद दी जा सकती थी. बस फिर क्या था..महाराणा ने फिर से अपनी सेना संगठित करनी शुरू की और कुछ ही समय में 40000 लडाकों की एक शक्तिशाली सेना तैयार हो गयी.

उसके बाद शुरू हुआ हल्दीघाटी युद्ध का दूसरा भाग जिसको इतिहास से एक षड्यंत्र के तहत या तो हटा दिया गया है या एकदम दरकिनार कर दिया गया है. इसे बैटल ऑफ़ दिवेर कहा गया गया है.

बात सन १५८२ की है, विजयदशमी का दिन था और महराणा ने अपनी नयी संगठित सेना के साथ मेवाड़ को वापस स्वतंत्र कराने का प्रण लिया. उसके बाद सेना को दो हिस्सों में विभाजित करके युद्ध का बिगुल फूंक दिया..एक टुकड़ी की कमान स्वंय महाराणा के हाथ थी दूसरी टुकड़ी का नेतृत्व उनके पुत्र अमर सिंह कर रहे थे. 

कर्नल टॉड ने भी अपनी किताब में हल्दीघाटी को Thermopylae of Mewar और दिवेर के युद्ध को राजस्थान का मैराथन बताया है. ये वही घटनाक्रम हैं जिनके इर्द गिर्द आप फिल्म 300 देख चुके हैं. कर्नल टॉड ने भी महाराणा और उनकी सेना के शौर्य, तेज और देश के प्रति उनके अभिमान को स्पार्टन्स के तुल्य ही बताया है जो युद्ध भूमि में अपने से 4 गुना बड़ी सेना से यूँ ही टकरा जाते थे.

दिवेर का युद्ध बड़ा भीषण था, महाराणा प्रताप की सेना ने महाराजकुमार अमर सिंह के नेतृत्व में दिवेर थाने पर हमला किया , हज़ारो की संख्या में मुग़ल, राजपूती तलवारो बरछो भालो और कटारो से बींध दिए गए। 
युद्ध में महाराजकुमार अमरसिंह ने सुलतान खान मुग़ल को बरछा मारा जो सुल्तान खान और उसके घोड़े को काटता हुआ निकल गया.उसी युद्ध में एक अन्य राजपूत की तलवार एक हाथी पर लगी और उसका पैर काट कर निकल गई।

महाराणा प्रताप ने बहलोलखान मुगल के सर पर वार किया और तलवार से उसे घोड़े समेत काट दिया। शौर्य की ये बानगी इतिहास में कहीं देखने को नहीं मिलती है. उसके बाद यह कहावत बनी की मेवाड़ में सवार को एक ही वार में घोड़े समेत काट दिया जाता है.ये घटनाये मुगलो को भयभीत करने के लिए बहुत थी। बचे खुचे ३६००० मुग़ल सैनिकों ने महाराणा के सामने आत्म समर्पण किया. 
दिवेर के युद्ध ने मुगलो का मनोबल इस तरह तोड़ दिया की जिसके परिणाम स्वरुप मुगलों को मेवाड़ में बनायीं अपनी सारी 36 थानों, ठिकानों को छोड़ के भागना पड़ा, यहाँ तक की जब मुगल कुम्भलगढ़ का किला तक रातो रात खाली कर भाग गए.

दिवेर के युद्ध के बाद प्रताप ने गोगुन्दा , कुम्भलगढ़ , बस्सी, चावंड , जावर , मदारिया , मोही , माण्डलगढ़ जैसे महत्त्वपूर्ण ठिकानो पर कब्ज़ा कर लिया। इसके बाद भी महाराणा और उनकी सेना ने अपना अभियान जारी रखते हुए सिर्फ चित्तौड़ कोछोड़ के मेवाड़ के सारे ठिकाने/दुर्ग वापस स्वतंत्र करा लिए.

अधिकांश मेवाड़ को पुनः कब्जाने के बाद महाराणा प्रताप ने आदेश निकाला की अगर कोई एक बिस्वा जमीन भी खेती करके मुसलमानो को हासिल (टैक्स) देगा , उसका सर काट दिया जायेगा। इसके बाद मेवाड़ और आस पास के बचे खुचे शाही ठिकानो पर रसद पूरी सुरक्षा के साथ अजमेर से मगाई जाती थी.

दिवेर का युद्ध न केवल महाराणा प्रताप बल्कि मुगलो के इतिहास में भी बहुत निर्णायक रहा। मुट्ठी भर राजपूतो ने पुरे भारतीय उपमहाद्वीप पर राज करने वाले मुगलो के ह्रदय में भय भर दिया। दिवेर के युद्ध ने मेवाड़ में अकबर की विजय के सिलसिले पर न सिर्फ विराम लगा दिया बल्कि मुगलो में ऐसे भय का संचार कर दिया की अकबर के समय में मेवाड़ पर बड़े आक्रमण लगभग बंद हो गए.

इस घटना से क्रोधित अकबर ने हर साल लाखों सैनिकों के सैन्य बल अलग अलग सेनापतियों के नेतृत्व में मेवाड़ भेजने जारी रखे लेकिन उसे कोई सफलता नहीं मिली. अकबर खुद 6 महीने मेवाड़ पर चढ़ाई करने के मकसद से मेवाड़ के आस पास डेरा डाले रहा लेकिन ये महराणा द्वारा बहलोल खान को उसके घोड़े समेत आधा चीर देने के ही डर था कि वो सीधे तौर पे कभी मेवाड़ पे चढ़ाई करने नहीं आया.

ये इतिहास के वो पन्ने हैं जिनको दरबारी इतिहासकारों ने जानबूझ कर पाठ्यक्रम से गायब कर दिया है. जिन्हें अब वापस करने का प्रयास किया जा रहा है।

बुधवार, 16 अगस्त 2023

हिन्दू धर्म की प्रमुख पुस्तकें - Download

Home Tech. Education Hindutva YouTube Instagram News

हिन्दू धर्म की प्रमुख पुस्तकें 

हिन्दू धर्म की प्रमुख पुस्तकें

"भगवद गीता" - 

"भगवद गीता" हिन्दू धर्म की एक प्रमुख पुस्तक है, जो महाभारत के एक अंश में प्राप्त होती है। इस पुस्तक में भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को धर्म, कर्तव्य, जीवन के मूल सिद्धांत, और आत्मा की महत्वपूर्णता के बारे में उपदेश देते हैं। "भगवद गीता" एक अध्यात्मिक ग्रंथ है जो जीवन के अनेक मुद्दों पर विचार करता है और मानव जीवन को मार्गदर्शन देने का प्रयास करता है।

Download Bhagavat Gita in Hindi


"सुन्दरकाण्ड पाठ" हिंदी 

"सुन्दरकाण्ड पाठ" हिंदी में भगवान श्रीराम के महाकाव्य "रामायण" के एक अंश को कहा जाता है। यह कथात्मक अध्याय भगवान हनुमान की महत्वपूर्ण भूमिका पर आधारित है, जिन्होंने लंका प्राप्त करने और सीता माता को बचाने के लिए विशेष यात्रा की। "सुन्दरकाण्ड" का पाठ करने से भक्ति और शक्ति में वृद्धि होती है, और इसे ध्यान में रखते हुए एक विशेष उपासना अवसर के रूप में किया जाता है।

"सुन्दरकाण्ड पाठ" को विभिन्न भाषाओं में उपलब्ध किया जाता है और भक्तों द्वारा नियमित रूप से पाठ किया जाता है। यह भगवान श्रीराम के भक्तों के लिए एक महत्वपूर्ण धार्मिक अभियान है जो उनके आध्यात्मिक और आधार्मिक विकास में सहायक होता है।

                                                                 Download Bhagavat Gita in Hindi


"गरुड़ पुराण"  हिंदी

"गरुड़ पुराण" हिंदू धर्म के पुराणों में से एक है। यह पुराण भगवान विष्णु के वाहन गरुड़ के द्वारा उनके आदिपुरुष ब्रह्मा से प्राप्त ज्ञान का संक्षिप्त रूप है। "गरुड़ पुराण" में भगवान विष्णु के अवतारों, धर्म, कर्म, प्रेतात्माओं की कथाएं, उपासना, आदि के विषय में विस्तारपूर्ण जानकारी दी गई है।

इस पुराण में भगवान गरुड़ के माध्यम से अनेक महत्वपूर्ण ज्ञान और उपदेश प्रस्तुत किए गए हैं, जो आध्यात्मिक और जीवन के विभिन्न पहलुओं पर विचार करने के लिए मार्गदर्शन करते हैं। "गरुड़ पुराण" के माध्यम से मनुष्य अपने जीवन को धार्मिक, नैतिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से देखने का अवसर प्राप्त करता है।

यह पुराण अनेक अध्यायों में विभाजित होता है और विभिन्न विषयों पर विस्तृत विचार देता है। "गरुड़ पुराण" को अध्ययन करके व्यक्ति अपने जीवन में धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण को मजबूती से अपना सकता है।

                                                                Download Bhagavat Gita in Hindi


"शिवताण्डवस्तोत्रम्" 

"शिवताण्डवस्तोत्रम्" एक प्रसिद्ध आराधना गीत है जो भगवान शिव को समर्पित है। इस स्तोत्र का मूल रूप संस्कृत भाषा में है और इसके शब्दों के माध्यम से शिव के विभिन्न रूपों, महत्वपूर्णता और महाकाव्यकारण की महिमा का वर्णन किया गया है।

"शिवताण्डवस्तोत्रम्" के शब्द और ताल का आदान-प्रदान आर्यभट्ट, राजा भोज और अन्य विद्वानों के द्वारा किया गया है। यह स्तोत्र शिव के नृत्य और तांडव की महत्वपूर्णता को दर्शाता है और शिव की उपासना करने वालों के द्वारा अनुष्ठानिक रूप में बड़े श्रद्धाभाव से पढ़ा जाता है।

यह स्तोत्र शिव के विभिन्न गुणों, शक्तियों और रूपों की महिमा का उद्घाटन करता है और उनकी महाकाव्यकारण की महत्वपूर्णता को प्रकट करता है। "शिवताण्डवस्तोत्रम्" का पाठ करने से श्रद्धालु शिव के प्रति अपनी आदर्श भावना को प्रकट करते हैं और आत्मा को शांति और उद्धारण की ओर प्राप्त करते हैं।

                                                              Download Bhagavat Gita in Hindi

शिव चालीसा 

शिव चालीसा (Shiv Chalisa) हिंदी में भगवान शिव की महिमा और गुणों की महत्वपूर्ण चालीसा है। यह चालीसा शिव के भक्तों द्वारा पढ़ी जाती है और उनकी उपासना में उपयोगी होती है। इस चालीसा के माध्यम से भगवान शिव के विभिन्न नामों, स्वरूपों और महत्वपूर्ण घटनाओं का वर्णन किया गया है।



"रिग्वेद संहिता"

"रिग्वेद संहिता" (Rigveda Samhita) हिंदू धर्म के चार वेदों में से एक वेद है और यह सबसे पुराना और महत्वपूर्ण वेद माना जाता है। यह वेद संस्कृत भाषा में लिखा गया है और भारतीय संस्कृति, धर्म, और दर्शन की मूलभूत जानकारी प्रदान करता है।

"रिग्वेद संहिता" का भाग "श्रुति" में आता है, जिसे दिव्य ज्ञान के स्रोत के रूप में माना जाता है। यह वेद विभिन्न मंडलों में विभाजित होता है, जिनमें प्रत्येक मंडल कई सूक्तों (छंदों) से मिलकर बनता है। "रिग्वेद संहिता" में भगवान के प्रति भक्ति, यज्ञ, धर्म, सृष्टि, आत्मा, प्राकृतिक विशेषताएं, और जीवन के मुद्दे आदि के विचार प्रस्तुत किए गए हैं।

इसके अनुसार, रिग्वेद में कुल 10,552 सूक्त (छंद) होते हैं, जिनमें लगभग 1,028 सूक्तों में ऋग्वेदीय संकेतों के साथ मन्त्रों का उद्घाटन होता है जो देवताओं, ऋषियों और ब्रह्मा के प्रति श्रद्धा एवं उपासना को व्यक्त करते हैं।

"रिग्वेद संहिता" भारतीय संस्कृति के आदिकाल से संबंधित महत्वपूर्ण ज्ञान और उपदेश प्रदान करती है और यह वेद हिंदू धर्म के मूलभूत तत्वों का अध्ययन करने का महत्वपूर्ण स्रोत है।





सोमवार, 17 जुलाई 2023

ऋग्वेद प्रथम अध्ययाय

Home

Technical Education

Hindutva

YouTube

Facebook

Instagram

ऋग्वेद प्रथम अध्ययाय

ऋग्वेद का पहला अध्याय शुरू करने से पहले आप से निवेदन है इसको कृपया पूरा पढ़े। आराम से एक एक करके। कोई जल्दी नहीं है जब समय मिले तब पढ़े और जहाँ तक पढ़ लिया है उसके बाद से शुरू करे।

वेद यूँ तो सबके लिए एक है लेकिन वेद का दर्शन सबको अलग अलग होता है। आपका भाव ये तय करेगा की भगवान आपको इसमें छिपे हुए आपके जीवन में जो काम आ सके और आपके द्वार समाज के लिए कुछ अच्छा हो सके उसका दर्शन करवाए। ये भगवान द्वारा कहे गए शब्द ज्ञान है जिससे संसार का इतना विस्तार हो सका है। प्लीज रेटिंग जरूर दे और अपने विचार जरूर साँझा करे आपको पढ़ कर कैसा लगा।


ऋग्वेद प्रथम अध्ययाय


गणेश जी का ध्यान कर इसे पढ़ना शुरू करे। ऐसे समझे भगवान आपसे बात कर रहे है। स्वामी दयानन्द सरस्वती कृत हिन्दी भाष्य आभार.

ऋग्वेद-अध्याय(01)

सूक्त पहला: मंत्र 1

देवता: अग्निः ऋषि: मधुच्छन्दाः वैश्वामित्रः छन्द: गायत्री स्वर: षड्जः

अ॒ग्निमी॑ळे पु॒रोहि॑तं य॒ज्ञस्य॑ दे॒वमृ॒त्विज॑म्। होता॑रं रत्न॒धात॑मम्॥

agnim īḻe purohitaṁ yajñasya devam ṛtvijam | hotāraṁ ratnadhātamam ||

पद पाठ
अ॒ग्निम्। ई॒ळे॒। पु॒रःऽहि॑तम्। य॒ज्ञस्य॑। दे॒वम्। ऋ॒त्विज॑म्। होता॑रम्। र॒त्न॒ऽधात॑मम् ॥

यहाँ प्रथम मन्त्र में अग्नि शब्द करके ईश्वर ने अपना और भौतिक अर्थ का उपदेश किया है।

पदार्थान्वयभाषा(Material language):-

हम लोग (यज्ञस्य) विद्वानों के सत्कार सङ्गम महिमा और कर्म के (होतारं) देने तथा ग्रहण करनेवाले (पुरोहितम्) उत्पत्ति के समय से पहिले परमाणु आदि सृष्टि के धारण करने और (ऋत्विज्ञं) बारंबार उत्पत्ति के समय में स्थूल सृष्टि के रचनेवाले तथा ऋतु-ऋतु में उपासना करने योग्य (रत्नधातमम्) और निश्चय करके मनोहर पृथिवी वा सुवर्ण आदि रत्नों के धारण करने वा (देवम्) देने तथा सब पदार्थों के प्रकाश करनेवाले परमेश्वर की (ईळे) स्तुति करते हैं। तथा उपकार के लिये हम लोग (यज्ञस्य) विद्यादि दान और शिल्पक्रियाओं से उत्पन्न करने योग्य पदार्थों के (होतारं) देनेहारे तथा (पुरोहितम्) उन पदार्थों के उत्पन्न करने के समय से पूर्व भी छेदन धारण और आकर्षण आदि गुणों के धारण करनेवाले (ऋत्विजम्) शिल्पविद्या साधनों के हेतु (रत्नधातमम्) अच्छे-अच्छे सुवर्ण आदि रत्नों के धारण कराने तथा (देवम्) युद्धादिकों में कलायुक्त शस्त्रों से विजय करानेहारे भौतिक अग्नि की (ईळे) बारंबार इच्छा करते हैं।


भावार्थ भाषाःDeep-spirit Language):-

इस मन्त्र में श्लेषालङ्कार से दो अर्थों का ग्रहण होता है। पिता के समान कृपाकारक परमेश्वर सब जीवों के हित और सब विद्याओं की प्राप्ति के लिये कल्प-कल्प की आदि में वेद का उपदेश करता है। जैसे पिता वा अध्यापक अपने शिष्य वा पुत्र को शिक्षा करता है कि तू ऐसा कर वा ऐसा वचन कह, सत्य वचन बोल, इत्यादि शिक्षा को सुनकर बालक वा शिष्य भी कहता है कि सत्य बोलूँगा, पिता और आचार्य्य की सेवा करूँगा, झूठ न कहूँगा, इस प्रकार जैसे परस्पर शिक्षक लोग शिष्य वा लड़कों को उपदेश करते हैं, वैसे ही अग्निमीळे० इत्यादि वेदमन्त्रों में भी जानना चाहिये। क्योंकि ईश्वर ने वेद सब जीवों के उत्तम सुख के लिये प्रकट किया है। इसी वेद के उपदेश का परोपकार फल होने से अग्निमीळे० इस मन्त्र में ईडे यह उत्तम पुरुष का प्रयोग भी है। (अग्निमीळे०) इस मन्त्र में परमार्थ और व्यवहारविद्या की सिद्धि के लिये अग्नि शब्द करके परमेश्वर और भौतिक ये दोनों अर्थ लिये जाते हैं। जो पहिले समय में आर्य लोगों ने अश्वविद्या के नाम से शीघ्र गमन का हेतु शिल्पविद्या आविष्कृत की थी, वह अग्निविद्या की ही उन्नति थी। परमेश्वर के आप ही आप प्रकाशमान सब का प्रकाशक और अनन्त ज्ञानवान् होने से, तथा भौतिक अग्नि के रूप दाह प्रकाश वेग छेदन आदि गुण और शिल्पविद्या के मुख्य साधक होने से अग्नि शब्द का प्रथम ग्रहण किया है ॥१॥

सूक्त पहला: मंत्र 2

देवता: अग्निः ऋषि: मधुच्छन्दाः वैश्वामित्रः छन्द: पिपीलिकामध्यानिचृद्गायत्री स्वर: षड्जः

अ॒ग्निः पूर्वे॑भि॒र्ऋषि॑भि॒रीड्यो॒ नूत॑नैरु॒त। स दे॒वाँ एह व॑क्षति॥

agniḥ pūrvebhir ṛṣibhir īḍyo nūtanair uta | sa devām̐ eha vakṣati ||

पद पाठ
अ॒ग्निः। पूर्वे॑भिः। ऋषि॑ऽभिः। ईड्यः॑। नूत॑नैः। उ॒त। सः। दे॒वान्। आ। इ॒ह। व॒क्ष॒ति॒ ॥

उक्त अग्नि किन से स्तुति करने वा खोजने योग्य है, इसका उपदेश अगले मन्त्र में किया है-

पदार्थान्वयभाषा (Material language):-

यहाँ अग्नि शब्द के दो अर्थ करने में प्रमाण ये हैं कि-(इन्द्रं मित्रं०) इस ऋग्वेद के मन्त्र से यह जाना जाता है कि एक सद्ब्रह्म के इन्द्र आदि अनेक नाम हैं। तथा (तदेवाग्नि०) इस यजुर्वेद के मन्त्र से भी अग्नि आदि नामों करके सच्चिदानन्दादि लक्षणवाले ब्रह्म को जानना चाहिये। (ब्रह्म ह्य०) इत्यादि शतपथ ब्राह्मण के प्रमाणों से अग्नि शब्द ब्रह्म और आत्मा इन दो अर्थों का वाची है। (अयं वा०) इस प्रमाण में अग्नि शब्द से प्रजा शब्द करके भौतिक और प्रजापति शब्द से ईश्वर का ग्रहण होता है। (अग्नि०) इस प्रमाण से सत्याचरण के नियमों का जो यथावत् पालन करना है, सो ही व्रत कहाता है, और इस व्रत का पति परमेश्वर है। (त्रिभिः पवित्रैः०) इस ऋग्वेद के प्रमाण से ज्ञानवाले तथा सर्वज्ञ प्रकाश करनेवाले विशेषण से अग्नि शब्द करके ईश्वर का ग्रहण होता है।

भावार्थ भाषाःDeep-spirit Language):-

जो मनुष्य सब विद्याओं को पढ़के औरों को पढ़ाते हैं तथा अपने उपदेश से सब का उपकार करनेवाले हैं वा हुए हैं वे पूर्व शब्द से, और जो कि अब पढ़नेवाले विद्याग्रहण के लिये अभ्यास करते हैं, वे नूतन शब्द से ग्रहण किये जाते हैं, क्योंकि जो मन्त्रों के अर्थों को जाने हुए धर्म और विद्या के प्रचार, अपने सत्य उपदेश से सब पर कृपा करनेवाले, निष्कपट पुरुषार्थी, धर्म की सिद्धि के लिये ईश्वर की उपासना करनेवाले और कार्य्यों की सिद्धि के लिये भौतिक अग्नि के गुणों को जानकर अपने कर्मों के सिद्ध करनेवाले होते हैं, वे सब पूर्ण विद्वान् शुभ गुण सहित होने पर ऋषि कहाते हैं, तथा प्राचीन और नवीन विद्वानों के तत्त्व जानने के लिये युक्ति प्रमाणों से सिद्ध तर्क और कारण वा कार्य्य जगत् में रहनेवाले जो प्राण हैं, वे भी ऋषि शब्द से गृहीत होते हैं। इन सब से ईश्वर स्तुति करने योग्य और भौतिक अग्नि अपने-अपने गुणों के साथ खोज करने योग्य है।

और जो सर्वज्ञ परमेश्वर ने पूर्व और वर्त्तमान अर्थात् त्रिकालस्थ ऋषियों को अपने सर्वज्ञपन से जान के इस मन्त्र में परमार्थ और व्यवहार ये दो विद्या दिखलाई हैं, इससे इसमें भूत वा भविष्य काल की बातों के कहने में कोई भी दोष नहीं आ सकता, क्योंकि वेद सर्वज्ञ परमेश्वर का वचन है। वह परमेश्वर उत्तम गुणों को तथा भौतिक अग्नि व्यवहार-कार्यों में संयुक्त किया हुआ उत्तम-उत्तम भोग के पदार्थों का देनेवाला होता है। पुराने की अपेक्षा एक पदार्थ से दूसरा नवीन और नवीन की अपेक्षा पहिला पुराना होता है। देखो, यही अर्थ इस मन्त्र का निरुक्तकार ने भी किया है कि-जो प्राकृत जन अर्थात् अज्ञानी लोगों ने प्रसिद्ध भौतिक अग्नि पाक बनाने आदि कार्य्यों में लिया है, वह इस मन्त्र में नहीं लेना, किन्तु सब का प्रकाश करनेहारा परमेश्वर और सब विद्याओं का हेतु, जिसका नाम विद्युत् है, वही भौतिक अग्नि यहाँ अग्नि शब्द से कहा गया है।

इस मन्त्र का अर्थ नवीन भाष्यकारों ने कुछ का कुछ ही कर दिया है, जैसे सायणाचार्य ने लिखा है कि-(पुरातनैः०) प्राचीन भृगु, अङ्गिरा आदियों और नवीन अर्थात् हम लोगों को अग्नि की स्तुति करना उचित है। वह देवों को हवि अर्थात् होम में चढ़े हुए पदार्थ उनके खाने के लिये पहुँचाता है। ऐसा ही व्याख्यान यूरोपखण्डवासी और आर्यावर्त्त के नवीन लोगों ने अङ्ग्रेजी भाषा में किया है, तथा कल्पित ग्रन्थों में अब भी होता है। सो यह बड़े आश्चर्य की बात है, जो ईश्वर के प्रकाशित अनादि वेद का ऐसा व्याख्यान, जिसका क्षुद्र आशय और निरुक्त शतपथ आदि सत्य ग्रन्थों से विरुद्ध होवे, वह सत्य कैसे हो सकता है ॥२॥

सूक्त पहला: मंत्र 3

देवता: अग्निः ऋषि: मधुच्छन्दाः वैश्वामित्रः छन्द: गायत्री स्वर: षड्जः

अ॒ग्निना॑ र॒यिम॑श्नव॒त्पोष॑मे॒व दि॒वेदि॑वे। य॒शसं॑ वी॒रव॑त्तमम्॥

agninā rayim aśnavat poṣam eva dive-dive | yaśasaṁ vīravattamam ||

पद पाठ
अ॒ग्निना॑। र॒यिम्। अ॒श्न॒व॒त्। पोष॑म्। ए॒व। दि॒वेऽदि॑वे। य॒शस॑म्। वी॒रव॑त्ऽतमम् ॥

अब परमेश्वर की उपासना और भौतिक अग्नि के उपकार से क्या-क्या फल प्राप्त होता है, सो अगले मन्त्र से उपदेश किया है-

पदार्थान्वयभाषा(Material language):-

निरुक्तकार यास्कमुनि जी ने भी ईश्वर और भौतिक पक्षों को अग्नि शब्द की भिन्न-भिन्न व्याख्या करके सिद्ध किया है, सो संस्कृत में यथावत् देख लेना चाहिये, परन्तु सुगमता के लिये कुछ संक्षेप से यहाँ भी कहते हैं-यास्कमुनिजी ने स्थौलाष्ठीवि ऋषि के मत से अग्नि शब्द का अग्रणी=सब से उत्तम अर्थ किया है अर्थात् जिसका सब यज्ञों में पहिले प्रतिपादन होता है, वह सब से उत्तम ही है। इस कारण अग्नि शब्द से ईश्वर तथा दाहगुणवाला भौतिक अग्नि इन दो ही अर्थों का ग्रहण होता है। (प्रशासितारं० एतमे०) मनुजी के इन दो श्लोकों में भी परमेश्वर के अग्नि आदि नाम प्रसिद्ध हैं। (ईळे०) इस ऋग्वेद के प्रमाण से भी उस अनन्त विद्यावाले और चेतनस्वरूप आदि गुणों से युक्त परमेश्वर का ग्रहण होता है। अब भौतिक अर्थ के ग्रहण में प्रमाण दिखलाते हैं-(यदश्वं०) इत्यादि शतपथ ब्राह्मण के प्रमाणों से अग्नि शब्द करके भौतिक अग्नि का ग्रहण होता है। यह अग्नि बैल के समान सब देशदेशान्तरों में पहुँचानेवाला होने के कारण वृष और अश्व भी कहाता है, क्योंकि वह कलायन्त्रों के द्वारा प्रेरित होकर देवों=शिल्पविद्या के जाननेवाले विद्वान् लोगों के विमान आदि यानों को वेग से दूर-दूर देशों में पहुँचाता है।

(तूर्णि०) इस प्रमाण से भी भौतिक अग्नि का ग्रहण है, क्योंकि वह उक्त शीघ्रता आदि हेतुओं से हव्यवाट् और तूर्णि भी कहाता है। (अग्निर्वै यो०) इत्यादिक और भी अनेक प्रमाणों से अश्व नाम करके भौतिक अग्नि का ग्रहण किया गया है। (वृषो०) जब कि इस भौतिक अग्नि को शिल्पविद्यावाले विद्वान् लोग यन्त्रकलाओं से सवारियों में प्रदीप्त करके युक्त करते हैं, तब (देववाहनः) उन सवारियों में बैठे हुए विद्वान् लोगों को देशान्तर में बैलों वा घोड़ों के समान शीघ्र पहुँचानेवाला होता है। उस वेगादि गुणवाले अश्वरूप अग्नि के गुणों को (हविष्मन्तः) हवियुक्त मनुष्य कार्यसिद्धि के लिये (ईळते) खोजते हैं। इस प्रमाण से भी भौतिक अग्नि का ग्रहण है ॥१॥

भावार्थ भाषाःDeep-spirit Language):-

इस मन्त्र में श्लेषालङ्कार से दो अर्थों का ग्रहण है। ईश्वर की आज्ञा में रहने तथा शिल्पविद्यासम्बन्धी कार्य्यों की सिद्धि के लिये भौतिक अग्नि को सिद्ध करनेवाले मनुष्यों को अक्षय अर्थात् जिसका कभी नाश नहीं होता, ऐसा धन प्राप्त होता है, तथा मनुष्य लोग जिस धन से कीर्त्ति की वृद्धि और जिस धन को पाके वीर पुरुषों से युक्त होकर नाना सुखों से युक्त होते हैं, सब को उचित है कि उस धन को अवश्य प्राप्त करें ॥३॥

सूक्त पहला: मंत्र 4

देवता: अग्निः ऋषि: मधुच्छन्दाः वैश्वामित्रः छन्द: गायत्री स्वर: षड्जः

अग्ने॒ यं य॒ज्ञम॑ध्व॒रं वि॒श्वतः॑ परि॒भूरसि॑। स इद्दे॒वेषु॑ गच्छति॥

agne yaṁ yajñam adhvaraṁ viśvataḥ paribhūr asi | sa id deveṣu gacchati ||

पद पाठ
अग्ने॒। यम्। य॒ज्ञम्। अ॒ध्व॒रम्। वि॒श्वतः॑। प॒रि॒ऽभूः। असि॑। सः। इत्। दे॒वेषु॑। ग॒च्छ॒ति॒ ॥

उक्त भौतिक अग्नि और परमेश्वर किस प्रकार के हैं, यह भेद अगले मन्त्र में जनाया है-

पदार्थान्वयभाषा(Material language):-

(अग्ने) हे परमेश्वर! आप (विश्वतः) सर्वत्र व्याप्त होकर (यम्) जिस (अध्वरम्) हिंसा आदि दोषरहित (यज्ञम्) विद्या आदि पदार्थों के दानरूप यज्ञ को (विश्वतः) सर्वत्र व्याप्त होकर (परिभूः) सब प्रकार से पालन करनेवाले (असि) हैं, (स इत्) वही यज्ञ (देवेषु) विद्वानों के बीच में (गच्छति) फैलके जगत् को सुख प्राप्त करता है। तथा जो यह (अग्ने) भौतिक अग्नि (यम्) जिस (अध्वरम्) विनाश आदि दोषों से रहित (यज्ञम्) शिल्पविद्यामय यज्ञ को (विश्वतः) जल पृथिव्यादि पदार्थों के आश्रय से (परिभूः) सब प्रकार के पदार्थों में व्याप्त होकर सिद्ध करनेवाला है, (स इत्) वही यज्ञ (देवेषु) अच्छे-अच्छे पदार्थों में (गच्छति) प्राप्त होकर सब को लाभकारी होता है ॥४॥

भावार्थ भाषाःDeep-spirit Language):-

इस मन्त्र में श्लेषालङ्कार है। जिस कारण व्यापक परमेश्वर अपनी सत्ता से पूर्वोक्त यज्ञ की निरन्तर रक्षा करता है, इसीसे वह अच्छे-अच्छे गुणों को देने का हेतु होता है। इसी प्रकार ईश्वर ने दिव्य गुणयुक्त अग्नि भी रचा है कि जो उत्तम शिल्पविद्या का उत्पन्न करने वाला है। उन गुणों को केवल धार्मिक उद्योगी और विद्वान् मनुष्य ही प्राप्त होने के योग्य होता है ॥४॥

सूक्त पहला: मंत्र 5

देवता: अग्निः ऋषि: मधुच्छन्दाः वैश्वामित्रः छन्द: गायत्री स्वर: षड्जः

अ॒ग्निर्होता॑ क॒विक्र॑तुः स॒त्यश्चि॒त्रश्र॑वस्तमः। दे॒वो दे॒वेभि॒रा ग॑मत्॥

agnir hotā kavikratuḥ satyaś citraśravastamaḥ | devo devebhir ā gamat ||

पद पाठ
अ॒ग्निः। होता॑। क॒विऽक्र॑तुः। स॒त्यः। चि॒त्रश्र॑वःऽतमः। दे॒वः। दे॒वेभिः॑। आ। ग॒म॒त् ॥

फिर भी परमेश्वर और भौतिक अग्नि किस प्रकार के हैं, सो अगले मन्त्र में उपदेश किया है-

पदार्थान्वयभाषा(Material language):-

जो (सत्यः) अविनाशी (देवः) आप से आप प्रकाशमान (कविक्रतुः) सर्वज्ञ है, जिसने परमाणु आदि पदार्थ और उनके उत्तम-उत्तम गुण रचके दिखलाये हैं, जो सब विद्यायुक्त वेद का उपदेश करता है, और जिससे परमाणु आदि पदार्थों करके सृष्टि के उत्तम पदार्थों का दर्शन होता है, वही कवि अर्थात् सर्वज्ञ ईश्वर है। तथा भौतिक अग्नि भी स्थूल और सूक्ष्म पदार्थों से कलायुक्त होकर देशदेशान्तर में गमन करानेवाला दिखलाया है। (चित्रश्रवस्तमः) जिसका अति आश्चर्यरूपी श्रवण है, वह परमेश्वर (देवेभिः) विद्वानों के साथ समागम करने से (आगमत्) प्राप्त होता है। तथा जो (सत्यः) श्रेष्ठ विद्वानों का हित अर्थात् उनके लिये सुखरूप (देवः) उत्तम गुणों का प्रकाश करनेवाला (कविक्रतुः) सब जगत् को जानने और रचनेहारा परमात्मा और जो भौतिक अग्नि सब पृथिवी आदि पदार्थों के साथ व्यापक और शिल्पविद्या का मुख्य हेतु (चित्रश्रवस्तमः) जिसको अद्भुत अर्थात् अति आश्चर्य्यरूप सुनते हैं, वह दिव्य गुणों के साथ (आगमत्) जाना जाता है ॥५॥

भावार्थ भाषाःDeep-spirit Language):-

इस मन्त्र में श्लेषालङ्कार है। सब का आधार, सर्वज्ञ, सब का रचनेवाला, विनाशरहित, अनन्त शक्तिमान् और सब का प्रकाशक आदि गुण हेतुओं के पाये जाने से अग्नि शब्द करके परमेश्वर, और आकर्षणादि गुणों से मूर्त्तिमान् पदार्थों का धारण करनेहारादि गुणों के होने से भौतिक अग्नि का भी ग्रहण होता है। सिवाय इसके मनुष्यों को यह भी जानना उचित है कि विद्वानों के समागम और संसारी पदार्थों को उनके गुणसहित विचारने से परम दयालु परमेश्वर अनन्त सुखदाता और भौतिक अग्नि शिल्पविद्या का सिद्ध करनेवाला होता है।

सूक्त पहला: मंत्र 6

देवता: अग्निः ऋषि: मधुच्छन्दाः वैश्वामित्रः छन्द: निचृद्गायत्री स्वर: षड्जः

यद॒ङ्ग दा॒शुषे॒ त्वमग्ने॑ भ॒द्रं क॑रि॒ष्यसि॑। तवेत्तत्स॒त्यम॑ङ्गिरः॥

yad aṅga dāśuṣe tvam agne bhadraṁ kariṣyasi | tavet tat satyam aṅgiraḥ ||

पद पाठ
यत्। अ॒ङ्ग। दा॒शुषे॑। त्वम्। अग्ने॑। भ॒द्रम्। क॒रि॒ष्यसि॑। तव॑। इत्। तत्। स॒त्यम्। अ॒ङ्गि॒रः॒॥

अब अग्नि शब्द से ईश्वर का उपदेश अगले मन्त्र में किया है-

पदार्थान्वयभाषा(Material language):-

हे (अङ्गिरः) ब्रह्माण्ड के अङ्ग पृथिवी आदि पदार्थों को प्राणरूप और शरीर के अङ्गों को अन्तर्यामीरूप से रसरूप होकर रक्षा करनेवाले हे (अङ्ग) सब के मित्र (अग्ने) परमेश्वर! (यत्) जिस हेतु से आप (दाशुषे) निर्लोभता से उत्तम-उत्तम पदार्थों के दान करनेवाले मनुष्य के लिये (भद्रम्) कल्याण, जो कि शिष्ट विद्वानों के योग्य है, उसको (करिष्यसि) करते हैं, सो यह (तवेत्) आप ही का (सत्यम्) सत्यव्रत=शील है ॥६॥

भावार्थ भाषाःDeep-spirit Language):-

जो न्याय, दया, कल्याण और सब का मित्रभाव करनेवाला परमेश्वर है, उसी की उपासना करके जीव इस लोक और मोक्ष के सुख को प्राप्त होता है, क्योंकि इस प्रकार सुख देने का स्वभाव और सामर्थ्य केवल परमेश्वर का है, दूसरे का नहीं। जैसे शरीरधारी अपने शरीर को धारण करता है, वैसे ही परमेश्वर सब संसार को धारण करता है, और इसी से इस संसार की यथावत् रक्षा और स्थिति होती है ॥६॥

सूक्त पहला: मंत्र 7

देवता: अग्निः ऋषि: मधुच्छन्दाः वैश्वामित्रः छन्द: गायत्री स्वर: षड्जः

उप॑ त्वाग्ने दि॒वेदि॑वे॒ दोषा॑वस्तर्धि॒या व॒यम्। नमो॒ भर॑न्त॒ एम॑सि॥

upa tvāgne dive-dive doṣāvastar dhiyā vayam | namo bharanta emasi ||

पद पाठ
उप॑। त्वा॒। अ॒ग्ने॒। दि॒वेऽदि॑वे। दोषा॑ऽवस्तः। धि॒या। व॒यम्। नमः॑। भर॑न्तः। आ। इ॒म॒सि॒॥

उक्त परमेश्वर कैसे उपासना करके प्राप्त होने के योग्य है, इसका विधान अगले मन्त्र में किया है॥

पदार्थान्वयभाषा(Material language):-

(अग्ने) हे सब के उपासना करने योग्य परमेश्वर ! (वयम्) हम लोग (धिया) अपनी बुद्धि और कर्मों से (दिवेदिवे) अनेक प्रकार के विज्ञान होने के लिये (दोषावस्तः) रात्रिदिन में निरन्तर (त्वा) आपकी (भरन्तः) उपासना को धारण और (नमः) नमस्कार आदि करते हुए (उपैमसि) आपके शरण को प्राप्त होते हैं॥७॥

भावार्थ भाषाःDeep-spirit Language):-

हे सब को देखने और सब में व्याप्त होनेवाले उपासना के योग्य परमेश्वर ! हम लोग सब कामों के करने में एक क्षण भी आपको नहीं भूलते, इसी से हम लोगों को अधर्म करने में कभी इच्छा भी नहीं होती, क्योंकि जो सर्वज्ञ सब का साक्षी परमेश्वर है, वह हमारे सब कामों को देखता है, इस निश्चय से॥७॥

सूक्त पहला: मंत्र 8

देवता: अग्निः ऋषि: मधुच्छन्दाः वैश्वामित्रः छन्द: यवमध्याविराड्गायत्री स्वर: षड्जः

राज॑न्तमध्व॒राणां॑ गो॒पामृ॒तस्य॒ दीदि॑विम्। वर्ध॑मानं॒ स्वे दमे॑॥

rājantam adhvarāṇāṁ gopām ṛtasya dīdivim | vardhamānaṁ sve dame ||

पद पाठ
राज॑न्तम्। अ॒ध्व॒राणा॑म्। गो॒पाम्। ऋ॒तस्य॑। दीदि॑विम्। वर्ध॑मानम्। स्वे। दमे॑॥

फिर भी वह परमेश्वर किस प्रकार का है, सो अगले मन्त्र में उपदेश किया है॥

पदार्थान्वयभाषा(Material language):-

-हम लोग (स्वे) अपने (दमे) उस परम आनन्द पद में कि जिसमें बड़े-बड़े दुःखों से छूट कर मोक्ष सुख को प्राप्त हुए पुरुष रमण करते हैं, (वर्धमानम्) सब से बड़ा (राजन्तम्) प्रकाशस्वरूप (अध्वराणाम्) पूर्वोक्त यज्ञादि अच्छे-अच्छे कर्म धार्मिक मनुष्यों के (गोपाम्) रक्षक (ऋतस्य) सत्यविद्यायुक्त चारों वेदों और कार्य जगत् के अनादि कारण के (दीदिविम्) प्रकाश करनेवाले परमेश्वर को उपासना योग से प्राप्त होते हैं॥८॥

भावार्थ भाषाःDeep-spirit Language):-

विनाश और अज्ञान आदि दोषरहित परमात्मा अपने अन्तर्यामिरूप से सब जीवों को सत्य का उपदेश तथा श्रेष्ठ विद्वान् और सब जगत् की रक्षा करता हुआ अपनी सत्ता और परम आनन्द में प्रवृत्त हो रहा है। उस परमेश्वर के उपासक हम भी आनन्दित, वृद्धियुक्त विज्ञानवान् होकर विज्ञान में विहार करते हुए परम आनन्दरूप विशेष फलों को प्राप्त होते हैं॥८॥

सूक्त पहला: मंत्र 9

देवता: अग्निः ऋषि: मधुच्छन्दाः वैश्वामित्रः छन्द: विराड्गायत्री स्वर: षड्जः

स नः॑ पि॒तेव॑ सू॒नवेऽग्ने॑ सूपाय॒नो भ॑व। सच॑स्वा नः स्व॒स्तये॑॥

sa naḥ piteva sūnave gne sūpāyano bhava | sacasvā naḥ svastaye ||

पद पाठ
सः। नः॒। पि॒ताऽइ॑व। सू॒नवे॑। अग्ने॑। सु॒ऽउ॒पा॒य॒नः। भ॒व॒। सच॑स्व। नः॒। स्व॒स्तये॑॥

वह परमेश्वर किस के समान किनकी रक्षा करता है, सो अगले मन्त्र में उपदेश किया है।

पदार्थान्वयभाषा(Material language):-

हे (सः) उक्त गुणयुक्त (अग्ने) ज्ञानस्वरूप परमेश्वर ! (पितेव) जैसे पिता (सूनवे) अपने पुत्र के लिये उत्तम ज्ञान का देनेवाला होता है, वैसे ही आप (नः) हम लोगों के लिये (सूपायनः) शोभन ज्ञान, जो कि सब सुखों का साधक और उत्तम पदार्थों का प्राप्त करनेवाला है, उसके देनेवाले (भव) हूजिये तथा (नः) हम लोगों को (स्वस्तये) सब सुख के लिये (सचस्व) संयुक्त कीजिये॥९॥

भावार्थ भाषाःDeep-spirit Language):-

इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। सब मनुष्यों को उत्तम प्रयत्न और ईश्वर की प्रार्थना इस प्रकार से करनी चाहिये कि-हे भगवन् ! जैसे पिता अपने पुत्रों को अच्छी प्रकार पालन करके और उत्तम-उत्तम शिक्षा देकर उनको शुभ गुण और श्रेष्ठ कर्म करने योग्य बना देता है, वैसे ही आप हम लोगों को शुभ गुण और शुभ कर्मों में युक्त सदैव कीजिये॥९॥





Source - https://www.hamarivirasat.com/scripture/india/vedas/rigveda/chapter-01/